खनन पर निर्भर तीन लाख लोगों की आजीविका पर पड़े पभाव से पैदा हो रहा है गंभीर सामाजिक एवं आर्थिक संकट
नई दिल्ली : गोवा में खनिज निर्यात काराबार को संवर्धित करने, सहयोग देने, संरक्षित करने और बढ़ाने की दिशा में समर्पित उद्योग संगठन गोवा मिनरल ओर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (जीएमओईए) ने आज केंद्र सरकार से 'थ्री पॉइंट आउटलाइन' में वर्ष 2020 के लिए अपनी उम्मीदें साझा की हैं।
गोवा में खनन पर प्रतिबंध के दुर्भाग्यपूर्ण दो वर्ष बीतने के मौके पर एसोसिएशन ने जोर देते हुए खनन उद्योग की मांग को सरकार के समक्ष रखा है। 7 फरवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण गोवा में खनन पर प्रतिबंध लग गया था।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद 15 मार्च, 2018 को राज्य में सभी खनन गतिविधियां रुक गई थीं। राज्य में खनन गतिविधियां बंद हो जाने से गंभीर आर्थिक और सामाजिक संकट खड़ा हो गया है।
दिल्ली में आज मीडिया की उपस्थिति में जीएमओईए ने गोवा में तत्काल खनन गतिविधियां प्रारंभ करन और इस उद्योग पर निर्भर 3 लाख से ज्यादा लोगों की आजीविका पुनः सुचारु कराने की मुख्य मांग पर जोर दिया। एसोसिएशन ने 'थ्री पॉइंट आउटलाइन' में निम्नलिखित मांगें रखीं :
1. खनन का पुनः प्रारंभ करना : आवश्यक नीतिगत, विधायी या न्यायिक फैसले के माध्यम से तत्काल खनन गतिविधियां प्रारंभ की जाएं। जुटाए जा चुके फंड के तहत परियोजनाओं का न्यायिक क्रियान्वयन : सभी उपलब्ध एवं निर्धारित फिस्कल
2.जुटाए जा चुके फंड के तहत परियोजनाओं का न्यायिक क्रियान्वयन : सभी उपलब्ध एवं निर्धारित फिस्कल असिस्टेंस पैकेज जैसे डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन (डीएमएफ) फंड्स आदि को न्यायिक तरीके से पीएमकेकेकेवाई के तहत लाभ मुहैया कराया जाए, जिससे खनन पर निर्भर लोगों के असहाय परिवारों को राहत मिल सके।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले आदेश में 15 मार्च, 2018 से सभी नवीनीकृत लीज पोस्ट में खनन गतिविधियां रोक दी थीं। हालांकि, एमएमआरडी कानून 1957 में 2015 में हुए संशोधन के तहत इसके सेक्शन 8ए(3) में इस स्थिति से राहत का प्रावधान है। 2015 के संशोधन के पीछे यही उद्देश्य था। गोवा के इतिहास में एवं सत्ता में हुए बदलाव ने समय-समय पर कानून में बदलाव किया है। गोवा, दमन व दीव (खनन पट्टों के रूप में घोषणाओं एवं छूट का उन्मूलन) कानून, 1987 को संसद से मंजूरी मिलन के बाद 23 मई, 1987 से एमएमआरडी कानून प्रभावी हो गया था। ० एसोसिएशन लगातार राज्य एवं केंद्र सरकार के प्राधिकारियों की इस अनूठी ऐतिहासिक स्थिति को
० एसोसिएशन लगातार राज्य एवं केंद्र सरकार के प्राधिकारियों की इस अनूठी ऐतिहासिक स्थिति को रेखांकित करता रहा है, जिसमें राज्य में खनन उद्योग को विशेष विधायी शक्ति मिली है। 0 देश में अन्य सभी राज्यों में 2015 में एमएमडीआर कानून में संशोधन के बाद खनन पट्टों की अवधि 50
0 देश में अन्य सभी राज्यों में 2015 में एमएमडीआर कानून में संशोधन के बाद खनन पट्टों की अवधि 50 साल की है। गोवा में यही प्रावधान लागू किया जाना चाहिए और गोवा को खनन पट्टों की वैधता के मामले में अतिरिक्त छूट भी मिलनी चाहिए।
3. अव्यावहारिक है डंप सेल का प्रावधान : डंप को बेचने का प्रावधान अव्यावहारिक प्रतीत होता है क्योंकि वर्मतान समय में बाजार की जरूरत बेहतर गुणवत्ता वाले अयस्क हैं और इस कदम से खनन गतिविधियां रुकने के कारण रोजगार को हुए नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती है।
जीएमओईए के प्रेसिडेंट श्री अंबर टिंब्लो ने कहा, “गोवा में खनन गतिविधियां रुकने के कारण गहरे सामाजिक-आर्थिक दुष्प्रभाव पड़े हैं। खनन गतिविधियों की राज्य की अर्थव्यवस्था में 20-25 प्रतिशत तक हिस्सेदारी रहती थी। आज करीब दो साल से खनन गतिविधियां रुकी होने के कारण यह योगदान शून्य हो गया है और देनदारी लगातार बढ़ती जा रहीहै। हम राज्य में तत्काल खनन गतिविधियां प्रारंभ किए जाने की जरूरत से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं। हमारे 'थ्री पॉइंट आउटलाइन' के पीछे कारण यही है कि हमें उम्मीद है कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के स्तर पर गोवा में खनन गतिविधियां पुनः प्रारंभ किए जाने को उच्च प्राथमिकता में रखा जाएगा। हमें उम्मीद है कि राज्य और केंद्र दोनों सरकारों के स्तर पर गोवा में खनन गतिविधियां पुनः प्रारंभ किए जाने को उच्च प्राथमिकता में रखा जाएगा।
उन्होंने आगे कहा, "खनन रुकने से राज्य की वित्तीय व्यवस्था, परिवारों ओर लोगों की मानसिक स्थिति तथा सामुदायिक स्थिरता पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ा है। इससे खनन पर निर्भर तीन लाख से ज्यादा लोगों की आजीविका तहस-नहस हो गई है और एक समृद्ध राज्य ठहरी हुई और बदहाल अर्थव्यवस्था का सामना कर रहा है।
श्री टिंब्लो ने कहा कि राज्य सरकार और उद्याग जगत को सुप्रीम कोर्ट के 30 जनवरी, 2020 के आदेश से उम्मीद जगी है। इसमें 15 मार्च, 2018 से पहले खनन किए जा चुके अयस्क को रॉयल्टी के भुगतान की शर्त पर बेचने की अनुमति दी गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस फैसले से छोटी अवधि में राज्य को जरूरी आय मिल सकेगी और थोड़ा कारोबार पुन: प्रारंभ होने से अन्य संबंधित पक्षों को भी राहत मिलेगी।
जीएमओईए के माननीय सचिव श्री सौविक मजूमदार ने कहा, “सभी खनन गतिविधियां रोक दिए जाने से पिछले 24 महीने में गोवा के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। किसी समय समृद्ध रहा राज्य इस समय पूरी तरह ठहर गया है। गोवा में खनन उद्योग का दशकों का इतिहास रहा है और इसने यहां के लोगों की आर्थिक-सामाजिक उन्नति में अहम भूमिका निभाई है तथा राज्य के राजस्व में भी बड़ी हिस्सेदारी निभाई है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिना किसी अपराध के खनन पर निर्भर लाखों लोगों को इस फैसले के कारण मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है। हम सभी पक्षों से अनुरोध करते हैं कि गोवा में जल्द से जल्द मजबूती, सौभाग्य और समृद्धि बहाल करने के लिए कदम उठाए जाएं।"
सेंटर फॉर मॉनीटरिंग ऑफ इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, गोवा रोजगार सृजन के मोर्चे पर सबसे बुरी स्थिति से गुजर रहा है। यहां बेरोजगारी की दर 34.5 प्रतिशत हो गई है, जो देश में सबसे ज्यादा है। खनन गतिविधियां रुकने से राज्य की 30 प्रतिशत से ज्यादा आबादी की आजीविका खत्म हो गई है। इसमें 70,000 प्रत्यक्ष एवं 2.5 लाख परोक्ष रोजगार शामिल हैं। इसके अलावा भी लाखों अन्य रोजगार प्रभावित हुए हैं।
खनन गतिविधियां रुकने से कई परियोजनाएं रुक गई हैं, जिनमें डीएमएफ, जीआईओपीएफ में सहयोग के साथ-साथ गोवा खनन उद्योग द्वारा वित्तपोषित कई प्रोजेक्ट पर प्रीव पड़ा है, जिससे विकास से जुड़ी ये गतिविधियां भी ठहर गए हैं। इसके साथ ही राज्य में खनन गतिविधियां रुक जाने से गोवा में निवेशकों का भरोसा भी कम हुआ है।
मशीनरी, लॉजिस्टिक्स, पोर्ट, सर्विस सेक्टर आदि संबंधित लोगों एवं इसके साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकार को पिछले दो साल में खनन गतिविधियां रुकने के कारण अब तक 7,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है। यह नुकसान औसतन 3400 करोड़ रुपये सालाना है। इसके साथ ही 12,000 से ज्यादा ट्रक और 150 से ज्यादा नौकाएं व अन्य संबंधित इकाइयां रुक गई हैं। लोगों की सामाजिक व वित्तीय स्थिति संकट में है
विशेषज्ञों का मानना है कि सामाजिक अस्थिरता से अपराध की दर भी बढ़ी है, जिससे गोवा के पर्यटन उद्योग पर मार पड़ रही है। उद्योग की चिंता को दूर करते हुए खनन को तत्काल शुरू किया जाना चाहिए, जिससे अर्थव्यवस्था पड़े रहे दुष्प्रभाव से निपटा जा सके। इससे लोगों के रोजगार की भी सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।
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