नॉन वर्जीनिया तंबाकू के नियमन से सरकार के राजस्व संग्रह में हो सकती है 30,000 करोड़ रुपये की वृद्धि : नेशनल हेल्थ फोरम
नई दिल्ली : तंबाकू नियंत्रण के क्षेत्र में काम करने वाले भारत के अग्रणी एनजीओ और तंबाकू नियंत्रण की दिशा में कई प्रभावी कदमों को उठाने में सहयोग करने वाले नेशनल हेल्थ फोरम (एनएचएफ) ने कोविड-19 महामारी से लड़ने की दिशा में भारत सरकार के प्रयासों की सराहना की है।
एनएचएफ ने वित्त मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखकर नॉन वर्जीनिया तंबाकू की बिक्री को नियमित करने की अपील की है, जिससे नॉन वर्जीनिया तंबाकू की बिक्री तंबाकू बोर्ड ऑफ इंडिया या एपीएमसी की निगरानी में नीलामी के जरिये सुनिश्चित हो। साथ ही एनएचएफ ने नॉन वर्जीनिया तंबाकू पर भी वर्जीनिया तंबाकू के बराबर ही प्रति किलो के आधार पर टैक्स लगाने की अपील की है। इस पहल से दोहरा फायदा होगा, पहला यह कि इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा और दूसरा यह कि अब तक देश में अनियमित तरीके से बिक रहे इस तंबाकू की बिक्री नियंत्रित हो सकेगी।
एनएचएफ की मैनेजिंग ट्रस्टी मंदाकिनी सिंह ने कहा, "हमारे अनुमान के मुताबिक, नॉन वर्जीनिया तंबाकू उत्पादों के मैन्यूफैक्चरर्स और डीलर्स पर रिवर्स चार्ज के रूप में 30 प्रतिशत टैक्स लगाने से राजस्व संग्रह में करीब 30,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इससे कर का दायरा बढ़ेगा और सभी तंबाकू उत्पाद समान रूप से टैक्स के दायरे में आ जाएंगे। अभी नॉन वर्जीनिया तंबाकू (जैसे बर्ले तंबाकू) का प्रयोग कर तंबाकू उत्पाद बनाने वाले सभी मैन्यूफैक्चरर्स असंगठित क्षेत्र में हैं और ये बड़े पैमाने पर कर चोरी करते हैं एवं तंबाकू नियंत्रण कानूनों का बहुत कम पालन करते हैं।
वर्तमान समय में नॉन वर्जीनिया तंबाकू को बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के स्वतंत्र रूप से बेचा जाता है और इस प्रक्रिया में भारतीय किसानों को नुकसान होता है। नॉन वर्जीनिया तंबाकू का प्रयोग चबाए जाने वाले तंबाकू उत्पाद, हुक्का, गुटखा, किवम, गुड़कु, जर्दा और बीड़ी में होता है। भारत में जितनी तंबाकू उत्पादित होती है, उनमें से करीब 85 प्रतिशत नॉन वर्जीनिया तंबाकू ही होती है। इन पर न ही टैक्स लगता है और न ही इन्हें उगाने वाले बेहद गरीब किसानों को अपने उत्पाद के लिए स्थिर कीमत मिल पाती है। कुछ निजी बिचौलिए होते हैं, जो इस बात का फायदा उठाते हैं और गरीब भारतीय किसानों के लाभ में सेंध लगाते हैं।
वहीं वर्जीनिया तंबाकू विधिवत व सख्त तरीके से नियंत्रित है और संतुलन रखने के लिए सरकार की ओर से टैक्स भी लगा है। इससे न केवल राजस्व मिलता है बल्कि किसानों के हितों की भी रक्षा होती है।
नॉन वर्जीनिया तंबाकू की बड़ी मात्रा का इस्तेमाल चबाने वाले तंबाकू उत्पाद, गुटखा, तंबाकू वाले पान मसाला, जर्दा आदि में होता है। कोविड-19 महामारी के कारण पैदा हुई परिस्थितियों में ये सभी उत्पाद खतरनाक हैं, क्योंकि इन्हें चबाकर थूकना पड़ता है।
हमारे मन में और अन्य इसी तरह के एनजीओ में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि अगर सरकार वर्जीनिया तंबाकू की ही तरह नॉन वर्जीनिया तंबाकू की बिक्री एवं डिस्ट्रीब्यूशन को रेगुलेट करती है, तो इससे सभी तंबाकू उत्पादों पर पारदर्शी एवं बराबर टैक्स सुनिश्चित होगा। इससे निश्चित तौर पर हमारे किसानों का फायदा होगा। मौजूदा समय में कीमत तय करने की बिचौलिए की ताकत के चलते कई बार उत्पाद बिकने के सालभर बाद तक भी किसानों को उनका पैसा नहीं मिल पाता है।
कोविड-19 महामारी ने आर्थिक गतिविधियों को बुरी तरह से प्रभावित किया है और आर्थिक गतिविधियों को ताकत देने और बेरोजगारों को राहत देने के लिए संसाधनों के इस्तेमाल की जरूरत है। 30,000 करोड़ रुपये तक के कर संग्रह का नया स्रोत निश्चित तौर पर कोविड-19 से निपटने की दिशा में प्रयासों को ताकत देगा।
इसलिए निष्कर्ष के तौर पर हम सरकार एवं वित्त मंत्रालय से इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने की अपील करते हैं, जो सही दिशा में उठाया गया कदम होगा। इससे नॉन वर्जीनिया तंबाकू के इस्तेमाल से उत्पाद बनाने वाले मैन्यूफैक्चरर्स और किसानों के बीच एक रेगुलेटरी लेयर बनेगी, जिससे न सिर्फ किसानों को फायदा होगा, बल्कि राजस्व संग्रह के मोर्चे पर भी बहुत लाभ होगा और इन उत्पादों की खपत भी कम होगी।